प्रदेश के प्रिय शिक्षक कर्मचारी साथियों,

उ0प्र0 माध्यमिक शिक्षक संघ (वित्तविहीन गुट) की स्थापना का औचित्य

इण्टमीडिएट शिक्षा अधिनियम 1921 में 14 अक्टूबर 1986 को संशोधन करके वित्तविहीन व्यवस्था प्रदेश पर थोपी गई। जिसके कारण प्रदेश का शिक्षक स्वतंत्र भारत में भी गुलाम नागरिक की तरह जीवन व्यतीत करने को मजबूर हुआ उत्तर प्रदेश में माध्यमिक शिक्षा का 80 प्रतिशत भार वहन करते हुए समाज को शिक्षा व दिशा देते हुए राष्ट्र निर्माण में अपने को समर्पित करते हुए भी शिक्षक रोजी पाकर भी रोटी के लिए मोहताज है जिसकी स्थिति मनरेगा के मजदूरों से भी बदतर है। जो अपने वेतन से अपने परिवार का भरण पोषण व बच्चों को उच्च शिक्षा व शादी विवाह करने में मजबूर है। इसके साथ-साय राज्य सरकारों द्वारा वित्तविहीन माध्यमिक विद्यालयों के साथ सौतेला व्यवहार होता रहा । वर्ष 1999 से प्राइवेट फार्मो के अग्रसारण का अधिकार भी छीन लिया गया। 22 दिसम्बर 2003 के शासनादेश से वित्तविहीन विद्यालय के प्रधानाचार्य से बोर्ड परीक्षा में केन्द्र व्यवस्थापक का अधिकार भी छीन लिया गया। इसके बावजूद भी जिन सवित्त विद्यालयों के संगठनों को वित्तविहीन विद्यालय के शिक्षक अपना नेता मानते थे, चुनाव में उनको वोट देते तथा समर्थन भी करते रहे। उन संगठनों द्वारा वित्तविहीन शिक्षकों प्रधानाचार्यों प्रबन्धकों, के सन्दर्भ में कोई संघर्ष करने के लिए तैयार नही हुए। वित्तविहीन शिक्षकों की आवाज को कुचलते रहे तब प्रदेश के शिक्षकों के दिल व दिमाग में अपनी उपेक्षा से आहत होकर अपना अस्तित्व कायम करने के लिए अलग संगठन बनाने के अतिरिक्त कोई रास्ता नही बचा । क्यों कि जिनसे मदद की अपेक्षा की वही हमें नाजायज औलाद, नकली कैप्सूल हमारी संस्थाओं को नकल का अड्डा इत्यादि संज्ञाओं से सम्बोधित कर अपमानित करने का प्रयास किया। जिसको मेरे जैसा व्यक्ति (लाल बिहारी यादव) बर्दास्त नही कर सका और शिक्षकों, प्रधानाचार्य व प्रबन्धको के हित में संघर्ष करने का बीड़ा उठाया। 22 जनवरी 2004 में संगठन की स्थापना कृष्णा कालेज, आजमगढ़ के परिसर में हुई।

जनवरी 2004 में संगठन की स्थापना से लेकर पूरे प्रदेश में अपने संसाधन से पूरे प्रदेश का भ्रमण प्रारंभ किया केन्द्र व्यवस्थापक की रिट जनपद महाराजगंज से आफताब आलम जो वर्तमान में संगठन के प्रदेश महासचिव है तथा गाजीपुर से रामबदन यादव जो वर्तमान जो वर्तमान में प्रदेश महासचिव ने भी दाखिल किया था लेकिन मेरी रिट में सर्व प्रथम आदेश पारित हो गया और उच्च न्यायालय इलाहाबाद के गलियारे में ही आफताब आलम व रामबदन यादव से सर्व प्रथम मुलाकात हुई । 22 दिसम्बर 2003 के शासनादेश पर 7 फरवरी 2004 को स्थगन आदेश मिल जाने पर सभी लोग मिलकर (लाल बिहारी यादव) के नेतृत्व में संगठन बनाने का संकल्प लिया। वर्ष 2004 से पूरे प्रदेश सें अनवरत चलते हुए प्रदेश के विभिन्न जिलो में जन सम्पर्क में जनपद मऊ, बलिया तथा जनपद गोरखपुर में राम चन्द्र यादव, चन्द्रभूषण मिश्र व छत्रपति शुक्ल के साथ बैठक हुई और सभी लोगों ने संगठन के साथ चलने का मन बनाया। प्रदेश में अपने संसाधन से चलते पूर्वाचल का वर्ष 2006 के अन्त तक संगठन बनाने में मैं (लाल बिहारी यादव) अपने को शारीरिक व आर्थिक व मानसिक रूप से थका महसूस करते हुए अपने प्रान्तीय अध्यक्ष के पद को लखनऊ के रीवां होटल में केवल चार पांच लोगों के बीच जिसमें रामवीर सिंह यादव, लियाकत अली, व हमारे साथ आफताब आलम व रामबदन यादव, जियारत हुसैन के मध्य रामवीर यादव को स्वयं सौप दिया तथा अपने को कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में स्वयं स्थापित कर लिया जिसका विरोध हमारे संगठन के लोगों के करने के बावजूद भी मैने अध्यक्ष पद को नही शिक्षक हित को सर्वोपर माना ।